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खंडवा में खोए-बिछड़े बच्चों के लिए नहीं कोई सुरक्षित ठिकाना , बाल कल्याण समिति व आदिम जाति विभाग ने भी किया इनकार

खंडवा में खोए-बिछड़े बच्चों के लिए नहीं कोई सुरक्षित ठिकाना , बाल कल्याण समिति व आदिम जाति विभाग ने भी किया इनकार

खंडवा में खोए-बिछड़े बच्चों के लिए नहीं कोई सुरक्षित ठिकाना , बाल कल्याण समिति व आदिम जाति विभाग ने भी किया इनकार 

खंडवा में खोए-बिछड़े बच्चों के लिए नहीं कोई सुरक्षित ठिकाना , बाल कल्याण समिति व आदिम जाति विभाग ने भी किया इनकार


सुशील विधाणी : मध्यप्रदेश : के खंडवा में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के सामने हर बार की तरह फिर एक चुनौती बनकर खड़ी हो रही है। जिसमे 6 से 18 वर्ष के बीच के खोए-बिछड़े बच्चों के लिए जिले में बालक गृह और बालिका गृह नहीं है। खंडवा सहित बुरहानपुर, हरदा और रेल मार्ग से दूर-दराज़ इलाकों से लाए गए बच्चों को तत्काल रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। (सीडब्ल्यूसी) के सामने यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि जिले में बालक गृह और बालिका गृह नहीं हैं।

वैकल्पिक व्यवस्था भी है ठप 

नियमों के अनुसार, सीडब्ल्यूसी द्वारा घर से बिछड़े बच्चों को कुछ समय के लिए वैकल्पिक व्यवस्था में रखा जाता है, ताकि परिवार से संपर्क होने तक बच्चे सुरक्षित रह सकें। खंडवा में यह जिम्मेदारी आदिम जाति कल्याण विभाग के छात्रावासों पर भी डाली गई थी। लेकिन हाल ही में मोदीग्राम और ओंकारेश्वर से मिले बच्चों को छात्रावासों में रखने की कोशिश नाकाम रही।

समिति बेबस बच्चों की यहां है स्थिति

शहर में बच्चों को रखने के लिए एक भी बालक गृह या बालिका गृह उपलब्ध नहीं।

छात्रावासों में रखने की कोशिश की जाती है, पर वहां से भी इनकार।

नतीजा यह कि समिति के सामने बच्चों को रातभर सुरक्षित रखने तक की व्यवस्था नहीं रह जाती।

अधिकारियों ने साफ शब्दों में कह दिया कि हॉस्टल बच्चों को नहीं रख सकते।


जिस जिले में मंत्रीजी बैठे हों, वहां बच्चों के लिए छत तक न मिलना सोचने पर मजबूर करता है कि बाल संरक्षण योजनाएं कागज पर हैं या जमीन पर

 

यह हाल उस जिले का है, जहां आदिम जाति कल्याण मंत्री खुद विधायक हैं। 

1.सवाल उठता है कि जब मंत्रीजी के अपने जिले में बच्चों को अस्थाई छत तक नसीब नहीं, तो पूरे प्रदेश में योजनाओं का क्या हाल होगा। 

2.क्या सरकार और विभाग सिर्फ योजनाओं के नाम से तालियाँ बजवा रहे हैं, या फिर वास्तव में इन योजनाओं का कोई अस्तित्व भी है?


बच्चों का भविष्य फाइलों में, असल जिंदगी में बेघरपन”


खंडवा में बाल कल्याण समिति हर बार बच्चों को सुरक्षित ठिकाना देने के लिए मशक्कत करती है, लेकिन जिले में वैकल्पिक गृह न होने से यह कोशिश बेनतीजा हो रही है।


यह सवाल खड़ा करता है कि –

क्या बच्चों के संरक्षण की योजनाएं केवल कागज पर चल रही हैं? या फिर प्रशासन व विभागों ने इन्हें भी खानापूर्ति का साधन बना दिया है?


पूर्व में संचालन होने वाला बालिका गृह कई वर्षों से बंद होने के बाद किसी प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था न होना तथा 28 मार्च 2024 में नवजीवन चिल्ड्रन होम बंद होने पर किसी प्रकार की विकल्प व्यवस्था न होना इस बात का प्रमाण है जिसके एवज में खंडवा विधायक द्वारा पत्र द्वारा वैकल्पिक व्यवस्था के लिए कलेक्टर को निवेदन को भी विभाग ने अस्वीकारते हुए ना वैकल्पिक व्यवस्था की ओर सोचा है जो खाली पड़े भवन पर उपयोग मे है। 










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